गुड आफ्टर नून कह रहे हैंइसलिए ही पैगाम दे रहे हैंक्यूँ रूठती हो हमसे ऐसेवैसे ही इस गर्मी में हम जल रहे हैं
जागते ही दोपहर हो जाती है।ये धूप न जाने किस चक्की का आटा खाती है।
दिन के हर पहर याद आते हो तुम
शुक्र हैं शायर की शायरी हैं इंटरनेट पर वरना
हमारे लब्ज तुम समझ ना पाते और
हम यूँही तन्हा मजनू रह जाते
ये दोपहर का आलम भी अजीब हैंतन में भरी सुस्ती भी क्या चीज हैंएक तरफ काम का बोझ सताता हैंदूसरी तरफ मूँछो वाला खडूस बॉस याद आता हैं
तुम सुबह सी ताज़ी, मैं शाम सा खुशनुमा,दोपहर मिलाने में माहिर मालूम होती है।
मिल लो गले एक बार जी भर के,मरने से पहले कही काश न रह जाये..आओ, हम तुम मिलकर साथ बैठेंनर्म सर्द की दोपहर में।
दोपहर क्या होई चाय की याद... आ गई।
कोई लाइलाज बीमारी हो गयी है
आजकल चाय से गहरी यारी हो गयी है
उनके ख्यालों में देखिए कुछ ऐसे खोए हम;हो रही थी शाम और हम दोपहर समझ रहे थे
रुई के गुलदस्ते जैसे बादल भी करें वारदिल पे खंजर हो जैसे इश्क के दिसम्बर मेंशामें हिज्र की लगें जून की दोपहरी का मंज़र हो जैसे
दोपहर क्या हुआ फिर आई चाय की याद...पहले पी लेते हैं चाय लेखन करेंगे इसके बाद
चिंता फिकर छोड़ो अपनों से नाता जोड़ो
कब काम आयेगा यह व्हाट्स एप
उठाओं और गुड आफ्टर नून बोलो
ठहर जाओ कुछ पहर की शाम होने दो
दोपहर की धूप में झुलश जाओगे तुम ||
दोपहर में फिर से वही वाली नींद चाहता हूं
शाम को उठे तो ऐसा लगे जैसे फिर से सुबह हो गई....!!!
खड़े है उम्र की उस दोपहर मे,
बचपन वाला सवेरा वो दोबारा न आये,हो सके तो मुलाकात कर लो यारों,न जाने कब जीवन की सांझ ढल जाये,
चिलचिलाती धुप में क्या मोहब्बत का पैगाम भेजेगुलाब के रूप में ये पसीने से महकती हवायें भेजेGood Afternoon
एसी कूलर का मजा तो गांव की गर्मी में हैलेकिन कमबख्त यहां बिजली ही नहींदोपहर एक युग सी लगती हैगर्म हवाओं में ये जिंदगी ना कटती है
सुबह तक कुछ होश ना रहा।
जो सासे तेरी यादों में खोया रहा।
सुबह कब हुई पता ही नही चला देर दोपहर तक क्या रहा।
भरी दोपहरी रौंदी थी जो पांव तले परछाइयां
शाम हुई तो कद से ऊँचे हो गये साये मेरे ही..
बागो मे फूल खिलते रहेंगे,रात मे दीप जलते रहेंगे,दुआ है भगवान से की आप खुश रहोबाकी तो हम आपको “मिस” करते रहेंगेGood Afternoon
कुछ किस्से, क़सीदे बाँटें थोड़ा तुम सुनाओ,थोड़ा हम थोड़ा तुम कहो, थोड़ा हम कुछ अच्छा,बुरा छोड़े कुछ चुप्पी, बातें करेंशायद जिंदगी कुछ आसान हो जाए,
सर्दियों की दोपहर में
धूप खिली हुई छत पर
गीले बाल सुखाते देखा आपको
बरसात सा हुआ भ्रम
कैद है उस वहम में आज भी हम